आयुर्वेदिक परंपरा और आधुनिक विज्ञान के संदर्भ में गोमूत्र पर शोध
कुल शोध
10
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
5
पारंपरिक उपयोग
4
संभावित जोखिम
2
आयुर्वेदिक दावों के अनुसार गोमूत्र में कैंसर रोधी गुण हो सकते हैं, परंतु इन दावों को प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाण अभी पर्याप्त नहीं हैं। चिकित्सक इसे छद्मविज्ञान मानते हैं और कैंसर के इलाज के लिए इसका सेवन अनुशंसित नहीं है।
गोमूत्र (गाय का मूत्र) पंचगव्यों में से एक है। जबकि गोमूत्र और गोबर का खाद के रूप में लाभ होता है, शोधकर्ता रोगों को ठीक करने के किसी भी अन्य दावे को खारिज करते हैं और इसे छद्म विज्ञान मानते हैं। वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव में इसके चिकित्सकीय उपयोग पर विवाद है।
ब्रिटेन के डॉ. काफोड हैमिल्टन के अनुसार, गोमूत्र के उपयोग से हृदय रोग दूर होता है तथा धमनियों में रक्तदाब सामान्य हो सकता है। भूख में वृद्धि, चर्म रोगों में लाभ और मूत्र संबंधी समस्याओं में सुधार जैसे दावे भी किए गए हैं। डॉ. सिमर्स का कहना है कि गोमूत्र रक्त में मौजूद दूषित कीटाणुओं को नष्ट करता है।
आयुर्वेद के अनुसार, गोमूत्र कुष्ठ रोग, बुखार, पेप्टिक अल्सर, यकृत रोग, किडनी विकार, अस्थमा, एलर्जी, सोरायसिस, एनीमिया और कैंसर तक के उपचार में सहायक बताया गया है। कुछ आधुनिक शोधों ने भी कैंसर रोधी गुण की संभावना व्यक्त की है, लेकिन ये निष्कर्ष व्यापक वैज्ञानिक परीक्षणों पर आधारित नहीं हैं।
भारत में गोमूत्र पान की प्रथा पारंपरिक रूप से सदियों से प्रचलित रही है। बौद्ध संघों में इसे श्रमणों के लिए अनिवार्य माना गया और भगवान बुद्ध ने भी इसे औषधि रूप में मान्यता दी थी। विनय पिटक के महावग्ग में पाण्डु रोग की चिकित्सा हेतु इसका उल्लेख है।
बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख है कि श्रमण हर्र को गोमूत्र से शोधित कर अपने पास रखते थे और पाचन या वात विकार में इसका उपयोग करते थे। गोमूत्र की भावना देकर हर्र में रोग प्रतिरोधक गुण आ जाते थे। यह परंपरा औषधीय दृष्टि से चली आ रही थी।
आयुर्वेद में गोमूत्र का उपयोग पांडुरोग (एनीमिया) और गलशुण्डी (टॉन्सिल) जैसी समस्याओं की चिकित्सा में उल्लेखित है। गोमूत्र सेवन के समर्थकों का कहना है कि यह स्वास्थ्यवर्धक है, लेकिन वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी इस दावे को कमजोर बनाती है।
गोमूत्र में यूरिया, क्रिएटिनिन, पोटैशियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे खनिज होते हैं, परन्तु इसमें हानिकारक जीवाणु और विषाक्त पदार्थ भी हो सकते हैं। ई. कोलाई, साल्मोनेला जैसे रोगजनक तत्व स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। दूषित गोमूत्र पीने से संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं।
गोमूत्र में भारी धातुएँ और कीटनाशक हो सकते हैं, जो गाय के पालन-पोषण के आधार पर बदलते हैं। ये विषाक्त तत्व शरीर में जमा होकर दीर्घकालिक समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं। इसीलिए स्वास्थ्य लाभ हेतु गोमूत्र का सेवन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अनुशंसित नहीं है।
रासायनिक खादों के दुष्प्रभावों के कारण गोमूत्र का उपयोग जैविक खाद और कीटनाशक के रूप में बढ़ रहा है। जीवामृत जैसे मिश्रण में गोमूत्र, गोबर, गुड़, बेसन और मिट्टी मिलाकर जैविक उर्वरक तैयार किया जाता है जो पर्यावरण के लिए लाभकारी माना जाता है।